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प्रस्तुत विचार बहुत ही व्यस्तता के मध्य लिखे गए हैं. इसलिए, भाषा अथवा वर्तनी की अशुद्धियाँ आपका ध्यान खींच सकती हैं. कृपया अनदेखा करें.
कई दिनों से मन में ऐसी उमड़-घुमड़ चल रही थी, कि अपने अनुभव, अपने कुछ भाव यहाँ व्यक्त करून. पर न तो व्यस्तताएं ही अनुमति दे रही थी, और न ही उपयुक्त अवसर दिख प् रहा था. जागरण जंक्शन (जेजे) की इस पहल ने मानो मन की उस चाह को उड़ान देने का रस्ता दिखा दिया. लगभग दो बरस पहले, जब जेजे की शुरुआत हुई थी, ठीक तभी से ही कोशिशें शुरू की थी इस मंच पर अपना एक अभिव्यक्ति मार्ग खोजने का. पर कुछ तकनीकी खामियों के चलते वह इच्छा पूर्ण न हो पाती. लेकिन ओमी की माँ (ॐ शांति ॐ फिल्म में) कहती थी, कि किसी चीज़ को पूरी शिद्दत से चाहो, तो पूरी कायनात तुम्हें उससे मिलवाने में जुट जाती है.
भरोसा नहीं छोड़ा, और एक दिन मुझे भी कामयाबी मिल ही गयी. दो बरस बाद ईश्वर ने सुन ली, और जेजे के मंच पर एक भरा-पूरा अकाउंट खुल गया. तब ख़ुशी तो बहुत हुई थी मुझे, ‘हाएँ’! उसके बाद दनादन पोस्ट करने का सिलसिला जो शुरू हुआ, वह आज तक बदस्तूर जारी है. अब बात करते हैं यहाँ के सफ़र की. और भी बहुत जगह हाथ-पैर मारे थे.. अपने विचार, आलेख, कवितायेँ अंतरजाल के माध्यम से प्रकाशित की. परन्तु सराहना-आलोचना छोडिये, पाठक ही नहीं मिले. हाँ, कुछ-एक बार ऐसा ज़रूर दिखा, कि वही भाव, वही अभिव्यक्ति पंक्ति-दर-पंक्ति कुछ-एक शब्द उलट-पुलट कर तथाकथित साहित्यिक चोरों ने अपने नाम से प्रकाशित करवा कर अपने समाज में अपना काम बना लिया. वैसे, ऐसे मौकों पर खेद कम, और प्रसन्नता ही अधिक हुई. क्योंकि किसी न किसी रूप में मेरे ही लिए तो स्वीकृति बन रही थी न! पर फिर भी, अपनी पहचान की जद्दोजहद तो मुझे ही करनी थी. जेजे पर मेरे विचारों को खुलेहाथों पाठक मिले.
बहुत से लोगों के ऐसे आरोप पढ़े हैं, कि यहाँ ‘दो, और लो’ की नीति है. होगी! आप किसी की रचना पर विचार देंगे, तो आपको भी विचार मिलेंगे. मेरा अनुभव तो मुझे यह बात स्वीकारने नहीं देता. शुरू से ही समय का तंग हाथ मुझे यहाँ अधिक समय तक रूकने नहीं देता. साथ ही, जेजे की यह भारी-भरकम साईट को खोलते हुए अक्सर ही मेरा बेचारा नेट-कनेक्शन हाथ खड़े कर दिया करता है. इसलिए बहुत बार अच्छी रचनाएँ पढ़ लेने के बाद भी टिप्पणी करने की स्थिति नहीं बन पाती. बहुत बार अच्छे-अच्छे रचनाकारों की कितनी ही रचनाएं प्रकाशित होकर पुरानी हो चुकी होती हैं, और यहाँ खबर भी नहीं. पर फिर भी उनका आशीर्वाद बराबर मिलता रहता है. कुछेक सज्जन तो ऐसे भी हैं, जिनकी रचनाओं को एक मर्तबा भी न पढ़ा होगा मैंने. बुरा लग रहा है लिखते हुए भी, पर समय का तकाज़ा है, कोई व्यक्तिगत पूर्वाग्रह नहीं. फिर भी, दूसरी ओर से दुराग्रह नहीं दीखता. यहाँ एक उल्लेखनीय बात मुझे जोड़नी चाहिए, कि इसका अर्थ यह नहीं है, कि टिप्पणियाँ इतने मायने रखती हैं. मेरी दृष्टि में, टिप्पणी एक आशीर्वाद के समान है, जो मिलती है तो अच्छा लगता है. वैचारिक आदान-प्रदान की सशक्त नींव, टिप्पणियों के महत्त्व को अनदेखा तो नहीं किया जा सकता. लेकिन उसकी संख्या बढे, जिससे लेख चर्चित हो जाए, यह एक छोटी सोच होगी. सोचने की बात है, दो मास पूर्व जिन आलेखों, रचनाओं को अधिमूल्यित किया गया था, अथवा ‘ब्लॉगर ऑफ़ द वीक’ का सम्मान दिया गया था, क्या आज वह किसी को याद भी होगा! महत्त्व इस बात का नहीं है, कि कितनी टिप्पणियाँ मिली, वरन इस बात का होता है, कि रचना योग्य हो. योग्य रचना स्वयं ही पाठक खोज लेती है, एवं सम्मान भी! हर बार कुछ उच्चकोटि के लेखकों की रचनाओं पर टिप्पणी न कर पाने के पीछे के मेरे निजी कारण निश्चय ही किसी अच्छे बहाने के सामान तो लगते हैं, पर आप में अधिकाँश जानते ही हैं, कि अपनी ओर से तो मेरी कोशिश बनी ही रहती है सब ओर जा कर ज्ञानार्जन कर पाने का, विचारों के आदान-प्रदान का. फिर भी, जो गली-गलियारे छूट गए हैं, उनके प्रति क्षमाप्रार्थी हूँ.
हाँ, जिनके साथ निरंतर संवाद चल रहे हैं, उनके साथ विचार बांटना अच्छा लगता है. एक आपसी समझ भी बन चुकी है अब तक. उसे ही जीना, उस पटरी पर बने रहना एक अच्छा अहसास है. पर उसे ‘लो, और दो’ कहना शायद हर एक पर लागू नहीं होता. एक और प्रिय बात, किसी भी साधारण लेखक को असाधारण करने में अहम् योगदान होता है, प्रोत्साहन का. वह यहाँ कभी थमा नहीं. प्रोत्साहन किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं होता. और इस मंच पर ऐसा अनुभव रहा है, की सब दूसरों को प्रोत्साहित करने में हर्षित होते दीखते हैं.
उच्च कोटि के कई विचारकों, व्यंग्यकारों, कवियों के विचार पढने को मिले. कभी-कभी किसी अनोखी विचारधारा की भी झलकें दिख जाया करती हैं. जो भी दीखता है, साहित्य के अतल समंदर की ही एक झलक मालूम होती है. प्रेरणाओं के संसार का गवाक्ष खुलने लगता है. अच्छा लगता है यहाँ का सदस्य होकर.
मीठे-मीठे अनुभवों के बाद, खट्टे-खट्टे संस्मरण लिखने की कोशिश करते हुए कुछ याद नहीं आ पाता. जब भी कोई गरिमा के विरुद्ध जाता दिखता है, तो जेजे परिवार का हस्तक्षेप सुखद लगता है. जज की भाँति, जेजे जब अपना फैसला सुनाते हैं, तो एकबारगी ऐसा भी लगता है, मानो हम बिग बॉस के घर में रह रहे हैं. और अब, लगे हाथों कुछ सुझावों की फेहरिस्त भी शामिल कर ही देनी चाहिए.
१.) नयी रचनाएं जिस प्रकार एक दिन के विलम्ब से आजकल फीचर की जा रही हैं, निजी तौर पर मेरा उत्साह तो इससे कुछ कम हो जाता है.. टॉप ब्लॉग्स का भी प्रकल्प कुछ बहुत रोचक नहीं लगा. यदि एक दिन में १० के स्थान पर २० रचनाएँ ही फीचर कर दी जाएँ तो शायद बेहतर रहे. किसी भी प्रकार, ताज़ा रचना पाठकों के संज्ञान में शीघ्रता से आये, तो लेखक को शायद अधिक संतुष्टि प्राप्त हो सके.
२.) यहाँ की एक आम शिकायत.. स्पैम की जांच हेतु जिस प्रकार हर बार कुछ शब्दों को लिखना, उनके गलत होने पर पुन: अपनी प्रतिक्रिया रखना.. यह सब निश्चय ही बहुत उबाऊ, एवं थकाने वाला है. इसका निदान, निवारण हो, तो क्या कहना!
यदि ये छोटी-मोटी बातें यहाँ अनुकूल हो जाएँ, तो मेरे भारत का यह जो नन्हा प्रारूप यहाँ दिख रहा है, इसकी क्या ही तुलना है!
जेजे, एवं मंच के सभी सम्माननीय लेखकों, कवियों, विचारकों हेतु शुभकामनाएं.
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